CBSE-IX-Hindi

05: नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया

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  • Qstn #14
    अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    आजाद भारत में दुर्गा भाभी को उपेक्षा और आदर दोनों मिले। सरकारों ने उन्हें पैसों से तोलना चाहा। कई वर्ष पहले पंजाब में उनके सम्मान में आयोजित एक समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने उन्हें 51 हजार रुपये भेंट किए। भाभी ने वे रुपये वहीं वापस कर दिए। कहा-“जब हम आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे थे, उस समय किसी व्यक्तिगत लाभ या उपलब्धि की अपेक्षा नहीं थी। केवल देश की स्वतंत्रता ही हमारा ध्येय था। उस ध्येय पथ पर हमारे कितने ही साथी अपना सर्वस्व निछावर कर गए, शहीद हो गए। मैं चाहती हूँ कि मुझे जो 51 हजार रुपये दिए गए हैं, उस धन से यहाँ शहीदों का एक बड़ा स्मारक बना दिया जाए, जिसमें क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास का अध्ययन और अध्यापन हो, क्योंकि देश की नई पीढ़ी को इसकी बहुत आवश्यकता है।”
    मुझे याद आता है सन् 1937 का ज़माना, जब कुछ क्रांतिकारी साथियों ने गाज़ियाबाद तार भेजकर भाभी से चुनाव लड़ने की प्रार्थना की थी। भाभी ने तार से उत्तर दिया-‘चुनाव में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। अतः लड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता।” मुल्क के स्वाधीन होने के बाद की राजनीति भाभी को कभी रास नहीं आई। अनेक शीर्ष नेताओं से निकट संपर्क होने के बाद भी वे संसदीय राजनीति से दूर ही बनी रहीं। शायद इसलिए अपने जीवन का शेष हिस्सा नई पीढ़ी के निर्माण के लिए अपने विद्यालय को उन्होंने समर्पित कर दिया।

    1. स्वतंत्र भारत में दुर्गा भाभी का सम्मान किस प्रकार किया गया?

    2. दुर्गा भाभी ने भेंट स्वरूप प्रदान किए गए रुपये लेने से इंकार क्यों कर दिया?

    3. दुर्गा भाभी संसदीय राजनीति से दूर क्यों रहीं?

    4. आज़ादी के बाद उन्होंने अपने को किस प्रकार व्यस्त रखा?

    5. दुर्गा भाभी के व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता आप अपनाना चाहेंगे?

    Ans :

    1. कई वर्ष पहले उनके सम्मान में एक समारोह का आयोजन किया गया।

      • स्वतंत्र भारत में दुर्गा भाभी को दो तरह से सम्मानित किया गया

      • पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री दरबारा सिंह ने उन्हें 51000 रुपये भेट किए।


      • दुर्गा भाभी ने भेंट स्वरूप प्रदान किए गए रुपये लेने से इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि उन्होंने आज़ादी के लिए जो संघर्ष किया था, उसका मूल्य नहीं लेना चाहती थी।

      • दुर्गा भाभी संसदीय राजनीति से इसलिए दूर रहीं क्योंकि राजनीति में उनकी रुचि नहीं थी।

      • आजादी के बाद दुर्गा भाभी ने नई पीढ़ी के निर्माण के लिए एक स्कूल खोला और वे उसी में पूरी तरह व्यस्त हो गईं।

      • मैं दुर्गा भाभी के चरित्र से निम्नलिखित विशेषताएँ अपनाना चाहूँगा, जैसे-

        • नि:स्वार्थ देश प्रेम

        • नई पीढ़ी के चरित्र निर्माण में रुचि

        • देशहित में त्याग

        • दृढ़ निश्चय

        • कर्म में विश्वास


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    Section : B
    अन्य पाठेतर हल प्रश्न
    लघु उत्तरीय प्रश्न
  • Qstn #1
    नाना साहब कौन थे?
    Ans : नाना साहब सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। वे बिठूर के शासक थे। वहाँ उनका राजमहल था। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत करते हुए कानपुर अनेक अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतार दिया था। अपनी मातृभूमि को आजाद करवाने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया।
  • Qstn #2
    अंग्रेज़ों को मैना पर अपना क्रोध उतारने का अवसर मिल गया?
    Ans : कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठाने और अनेक अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतारने के बाद नाना साहब अंग्रेजी सेना का मुकाबला न कर सके और कानपुर से भागने लगे। वे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ न ले जा सके। इससे अंग्रेजों को मैना पर क्रोध उतारने का मौका मिल गया।
  • Qstn #3
    अंग्रेज़ बिठूर की ओर क्यों गए?
    Ans : अंग्रेज़ बिठूर की ओर इसलिए गए क्योंकि वे कानपुर में नाना साहब को पकड़ न सके। नाना साहब अपने बिठूर स्थित राजमहल में हो सकते हैं, इसलिए वे बिठूर की ओर चले गए। वे नाना साहब को पकड़ना चाहते थे।
  • Qstn #4
    बिठूर पहुँचकर अंग्रेज सैनिक दल ने क्या किया?
    Ans : बिठूर पहुँचकर अंग्रेज़ सैनिक दल ने-

    • नाना साहब का राजमहल लूट लिया।

    • नाना साहब का महल ध्वस्त करने के लिए तोपें लगा दिया।
  • Qstn #5
    मैना कौन थी? उसे देखकर अंग्रेज सेनापति को आश्चर्य क्यों हुआ?
    Ans : मैना नानासाहब की पुत्री थी। उसे देखकर अंग्रेज सेनापति को इसलिए आश्चर्य हुआ क्योंकि जब सैनिक दल महल में लूट-पाट कर रहा था तब वह बालिका कहीं दिखाई न दी। अब उसके अचानक प्रकट होने से उन्हें आश्चर्य हो रहा था।
  • Qstn #6
    मैना ने सेनापति से क्या निवेदन किया और क्यों?
    Ans : मैना ने सेनापति से महल नष्ट न करने और उसकी रक्षा करने का निवेदन किया क्योंकि यह महल उसे अत्यंत प्रिय था। इसके अलावा वह इसी महल में पली-बढ़ी थी।
  • Qstn #7
    सेनापति ‘हे’ मैना का निवेदन क्यों स्वीकार नहीं कर पा रहे थे?
    Ans : मैना को अपनी पुत्री’ मैरी’ की सहचरी जानकर सेनापति ‘हे’ के मन में सहानुभूति उत्पन्न हुई। इसके बाद भी वे मैना को निवेदन इसलिए स्वीकार नहीं कर पा रहे थे क्योंकि वे अंग्रेज सरकार के कर्मचारी थे। उनका आदेश मानना उनका पहला कर्तव्य था।
  • Qstn #8
    आउटरम कौन था? वह सेनापति ‘हे’ पर क्यों बिगड़ उठा?
    Ans : आउटरम अंग्रेज़ी सेना का प्रधान सेनापति था। वह सेनापति हे’ पर इसलिए बिगड़ उठा क्योंकि सेनापति ‘हे’ ने नाना साहब के महल पर तोप से गोले बरसाकर अब तक नष्ट नहीं किया था। ‘हे’ द्वारा कर्तव्य की अवहेलना करते देख वह नाराज हो गया।
  • Qstn #9
    सेनापति ‘हे’ दुखी होकर नाना साहब के राजमहल से क्यों चले गए?
    Ans : सेनापति ‘हे’ मैना के निवेदन पर उस महल को बचाने के लिए सहमत हो गए थे। उन्होंने इसके लिए जब प्रधान सेनापति आउटरम से विनयपूर्वक कहा तो आउटरम किसी भी तरह न माना। अपनी इस तरह उपेक्षा देखकर ‘हे’ दुखी होकर वहाँ से चले गए।
  • Qstn #10
    सेनापति ‘हे’ के जाते ही अंग्रेज़ सैनिकों ने क्या-क्या किया?
    Ans : सेनापति ‘हे’ के जाते ही अंग्रेज सैनिकों ने-

    • नाना साहब के महल को घेर लिया।

    • वे फाटक तोड़कर हर जगह मैना को ढूँढ़ने लगे ताकि मैना को पकड़ सके।
  • Qstn #11
    आउटरम सेनापति ‘हे’ का अनुरोध स्वीकार नहीं कर पा रहा था, क्यों?
    Ans : अंग्रेजी सेना का प्रधान सेनापति आउटरम सेनापति ‘हे’ का अनुरोध इसलिए स्वीकार नहीं कर पा रहा था क्योंकि गवर्नर जनरल की आज्ञा के बिना वह कुछ नहीं कर सकता था। वह सेनापति ‘हे’ की विनती स्वीकार कर अंग्रेजी सरकार का कोप भोजन नहीं बनना चाहता था।
  • Qstn #12
    ‘मैना अपने महल से बहुत लगाव रखती थी’ सप्रमाण स्पष्ट कीजिए।
    Ans : मैना अपने महल से बहुत लगाव रखती थी। इसका प्रमाण यह है कि-

    • उसने निर्भीकतापूर्वक सेनापति ‘हे’ से महल की रक्षा करने की प्रार्थना की।

    • अंग्रेजों द्वारा नष्ट किए गए प्रासाद के अवशेष पर कुछ देर रोना चाहती थी।
  • Qstn #13
    नाना साहब के प्रासाद के विषय में भेजे गए केनिंग के तार का आशय क्या था?
    Ans : नाना साहब के राज प्रासाद के बारे में केनिंग ने जो तार भेजा था, उसका आशय था-लंदन के मंत्रिमंडल का यह मत था कि अंग्रेज नर-नारियों की हत्या करने वाले नाना साहब के स्मृति-चिह्न तक को मिटा दिया जाए।