ICSE-X-Hindi
ICSE Hindi Question Paper 2019 Solved for Class 10 year:2019
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- #ICSE Hindi Question Paper 2019 Solved for Class 10"
- Answer s to this Paper must be written on the paper provided separately.
- You will not be allowed to write during the first 15 minutes.
- This time is to be spent in reading the Question Paper.
- The time given at the head of this Paper is the time allowed for writing the answers.
- This paper comprises of two Sections - Section A and Section B.
- Attempt all questions from Section A.
- Attempt
any four questions from Section B, answering at least one question each
from the two books you have studied and any two other questions.
- The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].
- You will not be allowed to write during the first 15 minutes.
- #Section : A[40 Marks]
(Attempt all questions from this Section)
- Qstn #1 [15]Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics :
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए :
- #1-iआपके विदयालय में एक मेले का आयोजन किया गया था। यह किस अवसर पर, किस
उद्देश्य से किया गया था ? उसके लिए आपने क्या-क्या तैयारियाँ की ? आपने और
आपके मित्रों ने एवम शिक्षकों ने उसमें क्या सहयोग दिया था ? इन बिंदुओं
को आधार बनाकर एक प्रस्ताव विस्तार से लिखिए।Ans : मेरे विद्यालय में मेले का आयोजन
आज का युग विज्ञापन व प्रदर्शन का युग है। इस भौतिकवादी युग में नगरों तथा
ग्रामों में तरह-तरह के मेलों का आयोजन किया जा रहा है। ऐसे ही आयोजन
विद्यालयों व महाविद्यालयों में किए जा रहे हैं। ऐसी ही कई प्रदर्शनियाँ
हमारे नगर में भी लगती रहती हैं जिनका संबंध पुस्तकों, विज्ञान के उपकरणों,
वस्त्रों आदि से होता है। मैं गत रविवार अपने विद्यालय में आयोजित ऐसे ही
एक भव्य मेले में गया। मुझे बताया गया था कि वह प्रदर्शनी जैसे स्वरूप का
मेला अब तक की सबसे बड़ी प्रदर्शनी है जिसमें देशविदेश की कई बड़ी-बड़ी
कंपनियाँ और निर्माता अपने उत्पादों को प्रदर्शित कर रहे हैं।
इसी
बात को ध्यान में रखकर मैं अपने पिताजी के साथ उस ‘एपेक्स ट्रेड फेयर’ नामक
त्रि-दिवसीय मेले में चला गया।। मेला सचमुच विशाल एवं भव्य था। विद्यालय
के सभागार के अतिरिक्त बाहर के पंडालों में भी शामियाने के नीचे स्टाल लगे
हुए थे। हम पहले हॉल में गए। वहाँ सबसे पहले मोबाइल कंपनियों के स्टाल थे।
नोकिया, सैमसंग, एयरटेल, वोडाफ़ोन, पिंग, रिलायंस आदि मुख्य कंपनियाँ थीं।
सभी ने छूट और पैकेज की सूचनाएं लगा रखी थीं। सेल्समैन आगंतुकों को लुभाने
के लिए अपनी-अपनी बातें रख रहे थे।
आगे बढ़े तो इलैक्ट्रोनिक का
सामान दिखाई दिया जिनमें मुख्यतः माइक्रोवेव, एल.सी.डी., डी.वी.डी., कार
स्टीरियो, कार टी.वी., ब्लैंडर, मिक्सर, ग्राईंडर, जूसर, वैक्यूम क्लीनर,
इलैक्ट्रिक चिमनी, हेयर कटर, हेयर ड्रायर, गीज़र, हीटर, कन्वैक्टर, एयर
कंडीशनर आदि अनेकानेक उत्पादों से जुड़ी कंपनियों के प्रतिनिधि अपना-अपना
उत्पाद गर्व सहित प्रदर्शित कर रहे थे।
इन मेलों का मुख्य लाभ यही है
कि हम इनमें प्रदर्शन (फ्री डैमो) की क्रिया भी देख सकते हैं कि कौन-सा
उत्पाद कैसे संचालित होगा और उसका परिणाम क्या सामने आएगा। अगले स्टालों पर
गृह-सज्जा का सामान प्रदर्शित किया गया था। उसमें पर्दो, कालीनों और
फानूसों की अधिकता थी। हॉल से बाहर आए तो हमें सबसे पहले खाद्य-पदार्थों और
पेय-पदार्थों के स्टाल दिखाई दिए। इनमें नमकीन, भुजिया, बिस्कुट, चॉकलेट,
पापड़ी, अचार, चटनी, जैम, कैंडी, स्कवैश, रस, मुरब्बे, सवैयां आदि से जुड़े
तरह-तरह के ब्रांड प्रदर्शित किए गए थे। चखने के लिए कटोरों में नमकीन रखे
गए थे। पेय-पदार्थों को भी चखकर देखा जा रहा था।
मेले के अगले चरण
में वस्त्रों को दिखाया जा रहा था। इन स्टालों पर पुरुषों और स्त्रियों के
वस्त्र प्रदर्शित किए गए थे। पोशाकों पर उनके नियत दाम भी लिखे गए थे।
साड़ियों की तो भरमार थी। उसके आगे आभूषणों और साज-सज्जा (मेक-अप) के सामान
प्रदर्शित किए थे। इन उत्पादों में महिलाओं की अधिक रुचि होती है। यही
कारण था कि इस कोने में स्त्रियाँ ही स्त्रियाँ दिखाई दे रही थीं।
इसके
साथ ही हस्तशिल्प, हथकरघा और कुटीर उद्योगों द्वारा बना सामान दिखाया जा
रहा था। हाथ के बने खिलौनों की खूब बिक्री हो रही थी। कुछ लोग हाथ से बुने
थैले, स्वैटर और मैट खरीद रहे थे। सबके बाद मूर्तियों तथा तैल चित्रों को
दिखाने का प्रबंध था। यह विलासित का कोना था क्योंकि उनमें से कोई भी वस्तु
पाँच हजार रुपयों से कम मूल्य की नहीं थी। वहाँ इक्का-दुक्का लोग थे।
इस
प्रकार हमने मेले में जाकर न केवल उत्पादों के दर्शन किए परंतु उनके उपयोग
की विधियों की भी जानकारी ली। खरीद के नाम पर हमने दो लखनवी कुर्ते, एक
थैला, दो प्रकार के आचार तथा एक छोटा-सा लकड़ी का खिलौना खरीदा। सचमुच इस
प्रकार के मेले आज के विज्ञापन तथा प्रतिस्पर्धा के युग में विशेष महत्त्व
रखते हैं। मेले के साथ-साथ हमारे विद्यालय का नाम भी सुर्खियों में आ गया।
- #1-iiयात्रा एक उत्तम
रुचि है। यात्रा करने से ज्ञान तो बढ़ता ही है, स्थान विशेष की संस्कृति
तथा परंपराओं का परिचय भी मिलता है। अपनी किसी यात्रा के अनुभव तथा रोमांच
का वर्णन करते हुए एक प्रस्ताव लिखिए।Ans : मेरी पहली यात्रा
जब
से मैंने पर्वतीय स्थलों के विषय में जाना है, तभी से मेरे मन में यह
प्रबल इच्छा उठने लगी थी कि मैं किसी लंबी यात्रा पर जाऊँ और किसी पर्वतीय
स्थल की मनोरम घटा का आनंद उठाऊँ। मुझे लंबी यात्रा और पर्वतों का बहुत ही
शौक था। पर्वत मुझे दूर से ही आकर्षित करते हैं बहुत छुटपन में मैं जब कभी
भी किसी चित्र, चलचित्र या दूरदर्शन के कार्यक्रम में पर्वतीय स्थलों को
देखता या ऊँचे टीले को साक्षात् देख लेता तो ऐसा लगता मानो मैं पर्वत की ओर
भाग रहा हूँ और वह पर्वत या टीला मुझे आमंत्रित कर रहा है।
तीव्रगामी
रेलगाड़ी को देखकर मेरे मन में यह ललक उठती कि मैं भी उस पर सवार होकर
कहीं दूर जा निकलूँ और खूब मौज मस्ती करूँ। अंततः वह चिर प्रतीक्षित अवसर आ
ही गया। मैं बजवाड़ा के सैनिक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में कक्षा नवम का
छात्र था। विद्यालय की ओर से पर्वतीय स्थल की यात्रा का कार्यक्रम बनने लगा
तो मैंने अपने सहपाठियों से मिलकर मसूरी जाने का प्रस्ताव रखा।
हमारे
प्रभारी अध्यापक हमें पुरी ले जाना चाहते थे परंतु मेरे पर्वतीय मोह ने
उन्हें मसूरी चलने के लिए मना ही लिया। शनिवार को छुट्टियाँ हो रही थीं और
हमने रविवार की रात को रेलयात्रा प्रारंभ करनी थी। मैं कई दिनों से अपने
पापा और मम्मी की सहायता से अपना सामान तैयार कर रहा था। इसका यह परिणाम
हुआ कि मैं शनिवार को ही सामान बाँधकर उसकी सूची हाथ में लेकर बैठ गया। वह
रात प्रतीक्षा की रात थी। मेरे लिए वह रात पहाड़ जैसी थी जो बीत ही नहीं
रही थी। रविवार को हमने होशियारपुर के रेलवे स्टेशन से अपनी रेल यात्रा
प्रारंभ करनी थी।
वहाँ तक हम अपने विद्यालय की बस में गए। संध्या छह
बजकर पंद्रह मिनट पर ट्रेन छूटती थी। हम पाँच बजे ही रेल के डिब्बे में
सवार हो गए और ट्रेन छूटने के समय की प्रतीक्षा करने लगे। अंततः वह क्षण
आया जब गार्ड ने सीटी दी और हमारी लंबी यात्रा का प्रथम चरण शुरू हुआ।
होशियारपुर से जालंधर पहुँचकर हमें देहरादून एक्सप्रेस पकड़नी थी जो रात नौ
बजकर चालीस मिनट पर छूटती थी। जालंधर पहुँचकर हमारे प्रभारी ने हमसे कहा
कि हम सब रेलवे के अल्पाहार गृह में जाकर कुछ जलपान कर लें। दो लड़कों को
सामान की रखवाली के लिए छोड़ दिया गया। बाद में उन्हें भी जलपान के लिए भेज
दिया गया।
अमृतसर से चलकर देहरादून तक जाने वाली गाड़ी उचित समय पर आ
गई। हमने ईश्वर का धन्यवाद किया क्योंकि प्रतीक्षा का एक-एक पल काटना भारी
हो रहा था। रेलगाड़ी में आरक्षण होने के कारण हमें शायिका लेने में कोई
कठिनाई नहीं हुई। मुझे खिड़की से बाहर देखना अच्छा लगता है परंतु अब घटाटोप
अंधेरा था। विवश होकर मैं भी अन्य विद्यार्थियों की तरह सोने का प्रयास
करने लगा। देहरादून को मसूरी का प्रवेश-द्वार कहा जाता है और मसूरी को
पर्वतों की रानी कहते हैं। देहरादून से आगे हमें बस से जाना था। मैं
हरे-भरे पठार, घने जंगल, ऊँचे-ऊँचे पेड़ आदि देखकर मुग्ध हो रहा था। बस में
सवार होकर चले तो आगे घुमावदार सड़क आने लगी। रास्ता चक्करदार था। कुछ
लड़कों को मितली आने लगी।
कई बार ऐसा लगता कि बस जहाँ पर अब हैं,
वहीं पर घूम-घामकर पुनः पहुँच रही है। ऊँचे से और ऊँचे उठते हुए हमारी बस
हमें मसूरी तक ले गई। मसूरी जाकर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं प्रकृति की मनोरम
और स्वर्गीय गोद में पहुँच गया हूँ। मैं अपने साथियों के साथ पूरे पाँच दिन
तक मसूरी रहा। अब वह समय आया जब हमें लंबी यात्रा के इस पड़ाव को छोड़ना
था। हमें पुनः उसी मार्ग से उतनी ही लंबी यात्रा पर निकलते हुए अपने-अपने
घरों को लौटना था। बस ने हमें देहरादून लाकर छोड़ दिया।
वहाँ से हम
रिक्शों में बैठकर रेलवे स्टेशन पहुँचे और ट्रेन की प्रतीक्षा करने लगे।
ट्रेन अभी रेलवे यार्ड में वाशिंग के लिए गई हुई थी। जब शाटिंग इंजन से
खिंचती हुई वह पंद्रह डिब्बों की ट्रेन प्लेटफार्म पर आई तो हम उस पर सवार
होने के लिए दौड़ पड़े। बुकिंग होने के बावजूद न जाने क्यों हम अपना स्थान
पाने के लिए दौड़ पड़े। हमारे स्थान सुरक्षित थे। सात बजकर पैंतीस मिनट पर
हमारी उलटी यात्रा प्रारंभ हुई और हम गाते-बजाते मौज मनाते जालंधर की ओर जा
रहे थे।
जालंधर कैंट पहुँचकर हमें उसी प्रकार ट्रेन बदलकर
होशियारपुर जाना था जहाँ हमारे विद्यालय की बस पहले से ही हमारी प्रतीक्षा
में खड़ी थी।, इस प्रकार मेरे जीवन की पहली लंबी यात्रा संपन्न हुई। इस
यात्रा के अनुभव आज भी मेरे मन को मुग्ध करते हैं। आज भी कई बार ऐसा लगता
है कि मैं उसी तरह देहरादून एक्सप्रेस में बैठा हूँ और पहाड़ों की रानी
मसूरी की ओर भाग रहा हूँ।
- #1-iii‘वन है तो भविष्य है’ आज
हम उसी भविष्य को नष्ट कर रहे हैं, कैसे ? कथन को स्पष्ट करते हुए जीवन में
वनों के महत्त्व पर अपने विचार लिखिए।Ans : वन है तो भविष्य है
यह कथन शत-प्रतिशत सही है कि ‘वन है तो भविष्य है’। वन मानव जीवन के लिए
अनेक प्रकार से महत्त्वपूर्ण हैं। हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर जीवन का
आरंभ तब से ही हुआ, जब छोटे-छोटे हरे पौधों ने प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया
द्वारा अपना भोजन बनाना आरंभ किया। आज भी प्राण-वायु ऑक्सीजन हमें वृक्ष ही
देते हैं, इसीलिए भारतीय संस्कृति में वृक्षों की पूजा की जाती है। माँ के
आँचल की भाँति वे हमें छाया देते हैं, माँ के पूत-पय की भाँति अमृतमयी
जलधारा बरसाते हैं, भूमि की रक्षा कर हमें अन्न देते हैं, फल देते हैं।
वृक्ष या वनों को मानव के चिर मित्र कहा जाए, तो यह युक्तिसंगत होगा। इनके
लाभ को गिनना संभव ही नहीं। ये धरती के जीवनरक्षक हैं।
अपने भोजन को
बनाते हुए प्राणघातक कार्बन-डाइ-ऑक्साइड को लेकर हमें जीवनदायिनी ऑक्सीज़न
देते हैं। अपना भोजन बनाते हैं, लेकिन फल रूप में उसे संचित कर हमें लौटा
देते हैं। हमारी भूमि को अपनी जड़ों से पकड़कर हमें खेती योग्य भूमि की
हानि होने से बचाते हैं। इनकी हरीतिमा मनोहारी दृश्य उपस्थित करती है। इनके
सघन कुंज वन्य जीवन को आवास और सुरक्षा प्रदान करते हैं। वृक्षों से हमें
अनेक प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं। इनकी पत्तियाँ झड़कर, सड़कर भी
पुनः खाद के रूप में उपयोग में आती हैं। आज के जीव वैज्ञानिक मानते हैं कि
हमारे पारिस्थितिक-तंत्र (Ecosystem) को ये वृक्ष संतुलित करते हैं।
वृक्षों
से हमें अनेक लाभ हैं। पर्यावरण को सुरक्षा प्रदान करने के अलावा वृक्ष
हमें अन्न, फल, फूल, जड़ी-बूटियाँ, ईंधन तथा इमारती लकड़ियाँ प्रदान करते
हैं । वन वर्षा में सहायक होते हैं, भू-क्षरण को रोकते हैं तथा रेगिस्तान
के प्रसार पर अंकुश लगाते हैं। अनेक जीव-जंतुओं को वृक्ष ही आश्रय देते
हैं। अनेक उद्योग-धंधे वृक्षों से मिलने वाली सामग्री पर आधारित होते हैं।
प्लाईवुड, कागज़, लाख, रेशम, रबड़ जैसे उद्योग-धंधे पूर्णतया वृक्षों पर ही
आश्रित होते हैं।
आज जनसंख्या की वृद्धि के कारण आवास की गंभीर
समस्या उत्पन्न हो गई है। भूमि की मात्रा बढ़ाई नहीं जा सकती, इसलिए
जनसंख्या को आवास प्रदान करने के लिए वृक्षों की कटाई करना आवश्यक हो गया
है, साथ ही नई औद्योगिक इकाइयाँ लगाने के लिए भी भूमि की कमी को दूर करने
के लिए भी वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। वृक्षों की कटाई के कारण
पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है तथा मौसम में अनियमित बदलाव देखने को
मिलते हैं।
अनेक प्राकृतिक विपदाएँ, जैसे-बाढ़, भूकंप, भूस्खलन,
अनावृष्टि आदि वृक्षों की अनियंत्रित कटाई के कारण ही उत्पन्न हुई हैं।
पेड़-पौधों की कटाई के कारण वन्य पशुओं की अनेक दुर्लभ प्रजातियाँ लुप्त हो
गई हैं तथा धरती के सौंदर्य पर भी कुठाराघात हुआ है। बढ़ते हुए प्रदूषण के
कारण अनेक बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। वनों की कटाई पर रोक लगाने के लिए
हमारे देश में सन् 1950 में वन-महोत्सव को प्रारंभ किया गया, जो जुलाई माह
में मनाया जाता है। सन् 1976 से वनों के काटने के लिए केंद्रीय सरकार की
अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया है। राज्य सरकारें ‘वृक्ष लगाओ,
धन कमाओ’ योजना के अंतर्गत अनेक बेरोज़गारों को रोज़गार दे रही हैं।
उत्तराखंड
के गढ़वाल क्षेत्र में ‘चिपको आंदोलन’ वृक्षों की कटाई को रोकने के लिए
महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहा है। वृक्षों के संरक्षण के संबंध में ग्रामीण
समाज में जागृति लाना भी अत्यावश्यक है। भारतीय संस्कृति में तो वृक्षों की
पूजा की जाती है। आम, पीपल, बरगद, केला, आँवला जैसे अनेक वृक्ष पवित्र
माने जाते हैं। अतः प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि अधिक-से-अधिक वृक्ष
लगाए तथा हरे-भरे पेड़ को कभी न काटे। ‘प्राकृतिक संपदा के कोष और नैसर्गिक
सुषमा के आगार’-वृक्षों के संरक्षण की आज नितांत आवश्यकता है।
- #1-ivएक मौलिक कहानी लिखिए
जिसका अंत प्रस्तुत वाक्य से किया गया हो-और मैंने राहत की साँस लेते हुए
सोचा कि आज मेरा मानव जीवन सफल हो गया।Ans : कहानी : मेरा जीवन सफल हो गया।
जीवन में अनेक स्मृतियाँ होती हैं जो दुखद भी होती हैं और सुखद भी। परंतु
कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो न केवल हमें सीख देती हैं अपितु हमारा जीवन
बदलकर रख देती हैं। साथ ही हमें भावी जीवन के लिए भी दिशा प्रदान कर देती
हैं। ऐसी ही एक घटना बचपन में मेरे साथ भी हुई जो थी तो दुखद परंतु उसका
अंत बहुत सुखद था और मेरे लिए जीवन का नया रास्ता खुल गया। मेरे पिता बहुत
बड़े व्यवसायी हैं और मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूँ, इसलिए मेरा
लालनपालन बड़े प्यार से हुआ जिसके कारण मैं जिद्दी और अहंकारी हो गया। मैं
गरीब लोग, चाहे वे हमारे यहाँ काम करने वाले हों या दूसरे, किसी को कुछ
नहीं समझता था। मैं सबका उपहास उड़ाता था और उन्हें तरह-तरह से तंग किया
करता था।
यहाँ तक कि कई बार मैंने अपने पिता से हमारे यहाँ काम करने
वाले लोगों की झूठी शिकायतें की और उन पर लांछन लगाया जिस कारण उन्हें
निर्दोष होते हुए भी प्रताड़ना सहनी पड़ी। कई लोगों को तो नौकरी से भी
निकाल दिया गया। यह सब देखकर मुझे देखकर बहुत आनंद आता था। एक दिन मैं अपने
मौसी के बच्चों के साथ घूमने राजस्थान गया। पिताजी ने हमारे साथ हमारे
यहाँ काम करने वाले दो लोगों विकास और प्रभुदयाल को देखरेख के लिए साथ
भेजा।
रास्ते भर हम सब बच्चों ने उन्हें बहुत तंग किया, परंतु वे
विवशता के कारण चुप रहे। हमने सबसे पहले जयपुर की सैर की। शरारती होने के
कारण मैं इधर-उधर भाग रहा था कि अचानक मेरा धक्का खाकर विकास सामने से आते
एक टैम्पो की चपेट में आ गया। टैम्पों की रफ्तार बहुत तेज़ थी और वह मारकर
भाग गया। विकास को बहुत चोटें आईं मेरा सिर फट गया। जब तीन दिन बाद होश आया
तो मैं अस्पताल में था और मेरे सिर पर पट्टियाँ बँधी थीं। मेरे माता-पिता
भी आ गए थे।
उन्होंने मुझे बताया कि बहुत खून बह जाने के कारण मेरी
हालत गंभीर हो गई थी। डॉक्टर को खून चढ़ाना पड़ा। मुझे खून देने वाला ओर
कोई नहीं बल्कि हमारे साथ गया हमारा नौकर प्रभुदयाल था। उसने मेरे
दुर्व्यवहार के बावजूद न केवल रक्तदान देकर मुझे नया जीवन दिया बल्कि
दिन-रात मेरी सेवा में लगा रहा। मम्मी-पापा ने जब उसके प्रति कृतज्ञता जताई
तो उसने केवल इतना कहा कि इंसान ही इंसान के काम आता है। यह बात मेरे दिल
को छू गई और मुझे अपने आप पर शर्म आने लगी तथा यह भी समझ में आ गया कि
अमीरगरीब, छोटा-बड़ा कुछ नहीं होता। जो समय पर सब कुछ भूलकर किसी की मदद
करे वही बड़ा है
और वही अमीर है। मैंने प्रवीन से माफ़ी माँगी और कहा
कि मुझे आज यह सबक मिल गया है कि घमंड नहीं करना चाहिए तथा सभी को समान
समझना चाहिए। इस घटना ने मेरे जीवन की दिशा ही बदल दी। उस दिन का वह सबक
मेरे भावी जीवन में भी काम आएगा। इससे न मैं केवल एक सच्चा इंसान बन सकूँगा
बल्कि भगवान के दिए इस अनमोल जीवन को दूसरों के काम में लगा सकूँगा। मैंने
अपने हृदय परिवर्तन पर राहत की साँस ली और सोचा कि आज मेरा मानव जीवन सफल
हो गया।
- #1-vनीचे दिए गए चित्र को ध्यान
से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुए कोई लेख, घटना अथवा
कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट संबंध, चित्र से होना चाहिए।
Ans : चित्र प्रस्ताव : बाल मज़दरी या बाल-श्रम
प्रस्तुत चित्र का संबंध बाल मजदूरी या बाल-श्रम से है। बाल-श्रम किसी भी
समाज व राष्ट्र के लिए सबसे बड़ा कलंक माना गया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
विभिन्न संस्थाएँ व गैर-सरकारी संगठन और क्लब इस अभिशाप के उन्मूलन के लिए
विश्व-स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। प्रायः देखने में आता है कि जिस आयु में
बच्चे विद्यालय की पोशाक पहनकर, साफ-सुथरे बनकर तथा पुस्तकों का बैग उठाकर
पढ़ने जाते हैं, उस आयु के बच्चे विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे होते
हैं।
खेतों, दुकानों, ढाबों, फैक्टरियों, लघु उद्योगों, भवन-निर्माण
आदि से जुड़े हज़ारों-लाखों बालमज़दूर हैं। कई विषैले, घातक व अस्वास्थ्यकर
व्यवसायों से भी बाल-श्रमिक जोड़े जा रहे हैं। पटाखे, आतिशबाज़ी,
बीड़ी-उद्योग व रसायनिक उद्योगों में भी इन अबोध बच्चों से मज़दूरी करवाई
जाती है। कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं। आज का बच्चा कल का
नेता, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, शोधार्थी, शिक्षाशास्त्री, व्यापारी,
कलाकार आदि कुछ भी हो सकता है। अतः समाज, उत्पादकों तथा राष्ट्र नेताओं का
यह परम कर्तव्य बन जाता है कि इन नन्हें अविकसित फूलों को विकास से पूर्व
ही मुरझा जाने के लिए विवश न करें।
विश्व के कई देशों, विशेषकर
एशियाई देशों में करोड़ों बच्चे अपने बचपन से ही वंचित किए जा रहे हैं। कई
बच्चों को मार-पीट तथा क्रूर व्यवहार द्वारा बाल-मजदूरी के लिए बाध्य किया
जा रहा है। कछ बच्चों का अपहरण करके उनसे विविध क्षेत्रों में बलपूर्वक काम
करवाया जा रहा है। कुछ देशों में कई ऐसे क्षेत्र भी देखे गए जहाँ बच्चों
को बेच दिया जाता है और उन्हें खरीदने वाले उनका भरपूर शोषण करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय
श्रम संगठन का अनुमान है कि विकासशील देशों में 250 करोड़ों से भी अधिक
ऐसे बाल मज़दूर हैं जिसकी आयु 5 से 14 वर्ष के बीच है। इनमें से 60% बच्चे
एशिया में, 32% अफ्रीका में तथा 7% दक्षिणी अमेरिका में काम कर रहे हैं।
काम करते समय उनका सामना खतरनाक अपशिष्ट से होता है, जो गंभीर स्वास्थ्य
समस्याएँ पैदा कर सकता है। बाल-श्रम का मुख्य कारण निर्धनता व अभावग्रस्तता
है। ऐसा भी देखा गया है कि कई निर्धन माता-पिता अपने बच्चों को किसी
फैक्टरी मालिक के पास काम के लिए गिरवी रख देते हैं और उसके बदले में ऋण के
रूप में तुरंत धन ले लेते हैं। कई बार बच्चा अपनी शारीरिक सीमा के कारण
उतना कठोर काम नहीं कर सकता तो मालिक उसकी जीवन-यापन व आहार की आवश्यकताओं
में कटौती लगा देता है।
ऐसी दशा में बच्चा निम्नस्तरीय मानव की
जीवन-शैली जीने के लिए विवश हो जाता है। कितनी लज्जाजनक वास्तविकता है कि
बाल-श्रम की दृष्टि से भारत में बाल मजदूरों की संख्या सर्वोच्च है। अनुमान
बताते हैं कि भारत में 60 से 115 लाख बाल श्रमिक हैं। इनमें से अधिकतर
कृषि क्षेत्रों, पैकिंग, घरेलू नौकर, रत्नों के पत्थर पॉलिश करने, पटाखों
की फैक्टरियों, बीड़ी के कारखानों और ढाबों-दुकानों में कार्यरत हैं।
दिसंबर, 1996 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय बच्चों के पक्ष में
ऐतिहासिक निर्णय लिया है।
इस निर्णय के अनुसार उन मालिकों को दंडित
करने का प्रावधान है, जो बच्चों को खतरनाक व्यवसाय में धकेलते हैं। अगले ही
वर्ष 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग’
(एन० एच० आर० सी) को आदेश देकर बंधुआ मज़दूरी के विरुद्ध सभी राज्यों का
पर्यवेक्षण करने को कहा। राज्य सरकारों ने ऐसे बाल-मजदूरों के उदाहरण
ढूँढने के लिए कई सर्वेक्षण करवाए।
कुछ मालिकों को अभियुक्त भी बनाया
गया परंतु कोई भी जेल में बंद नहीं किया जा सका। बाल-मज़दूरी के इस कलंक
को मिटाने के लिए पूरे देश के प्रबुद्ध नागरिकों को आगे आना चाहिए।
गैरसरकारी संगठनों की सहायता से प्रत्येक बच्चे की शिक्षा का प्रावधान
करवाना चाहिए। आस-पास घरों या अन्य क्षेत्रों में बाल-श्रमिकों की जानकारी
लेकर उन्हें शिक्षा की ओर प्रवृत्त करना चाहिए। सरकार द्वारा बनाए गए कानून
का पालन करने के लिए हमारा सहयोग अनिवार्य है।
- Qstn #2 [7]Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of the topics given below :
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिंदी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए : (i) आप अपने परिवार के साथ किसी एक प्रदर्शनी (Exhibition) को देखने गए
थे। वहाँ पर आपने क्या क्या देखा ? वहाँ कौन-कौन सी चीजों ने आकर्षित किया ?
जीवन में उनकी क्या उपयोगिता है ? अपना अनुभव बताते हुए अपने प्रिय मित्र
को पत्र लिखिए। (ii) दिन-प्रतिदिन बढ़ते हुए जल संकट की ओर ध्यान
आकर्षित करते हुए नगर पालिका के अध्यक्ष को एक पत्र लिखिए जिसमें वर्षा के
जल का संचयन (rain water harvesting) करने के लिए व्यापक स्तर पर परियोजना
चलाने का सुझाव दिया गया हो।Ans : (i) परीक्षा भवन,
——- नगर।
दिनांक : 18.9.20.......
प्रिय मित्र सुमंत,
सप्रेम नमस्कार। आशा है तुम स्वस्थ एवं सानंद होंगे। आज मैं तुम्हें अपना
ऐसा अनुभव बताने जा रहा हूँ जिसे मैंने अपने परिवार के साथ एक प्रदर्शनी
में जाकर प्राप्त किया। मित्र! गत सप्ताह हमारे नगर में हस्तशिल्प की एक
भव्य प्रदर्शनी आयोजित की गई। प्रदर्शनी पूरे सप्ताह चलने वाली थी, परंतु
हम दूसरे ही दिन प्रदर्शनी देखने चले गए क्योंकि मुझे हस्तशिल्प के प्रति
विशेष उत्साह था। मैं प्रदर्शनी में लोगों की कारीगरी देखकर दंग रह गया।
मैंने प्राचीन हस्तकला के ऐसे नमूने कभी नहीं देखे थे। सबसे बड़ा विस्मय
इस बात पर हुआ कि ग्रामीण लोगों ने कूड़ा समझी जाने वाली तुच्छ वस्तुओं से
सुंदर कालीन, पायदान, चित्र, पत्रिका-स्टैंड, फ्रेम, मेजपोश, टोकरियाँ,
आसन-न जाने कितनी आकर्षक वस्तुएँ बना डाली थीं। शहतूत और बाँस की टहनियों
से बनी वस्तुओं का तो रूप ही निराला था। वस्त्रों में रेशम, पशमीना व सूती
कपड़ों पर भव्य कारीगरी दिखाई गई थी। हमने भी कुछ वस्त्र खरीदे और शाम होने
पर घर आए। ऐसी ही प्रदर्शनी कभी फिर लगी, तो तुम्हें अवश्य सूचित करूँगा।
तुम्हें बहुत आनंद आएगा।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
क.ख. ग. (ii) सेवा में,
अध्यक्ष महोदय,
नगरपालिका,
——- नगर।
विषय : नगर में बढ़ रहा जल संकट।
मान्य महोदय,
मैं इस पत्र द्वारा आपका ध्यान नगर में दिन-प्रतिदिन बढ़ते जल संकट की ओर
दिलाना चाहता हूँ। महोदय, हमारे नगर में जल सुविधाएँ नाममात्र हैं। प्रातः
जल आपूर्ति पाँच से सात तक रहती है। दुपहर को आपूर्ति बंद रहती है। संध्या
समय सात से आठ तक पानी आता है। जिन लोगों के घरों में हैंडपंप लगे हैं,
उन्हें भी भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि जल-स्तर बहुत
नीचे चला गया है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि नगर में शिविर लगाकर लोगों को
वर्षा के जल का संचयन करने की ओर प्रेरित किया जाए।
संभव हो तो ऐसी
व्यवस्था करने के लिए अनुदान की भी कुछ-न-कुछ व्यवस्था की जानी चाहिए। इससे
लोगों को तो राहत मिलेगी ही, साथ ही साथ नगरपालिका के कार्य में भी सहजता आ
सकेगी। राजस्थान के लोग वर्षा जल संचयन (Rain Water Harvesting) में
अत्यंत दक्ष हैं। हमें उनसे प्रेरणा लेकर इस जल संकट का समाधान करना चाहिए।
सधन्यवाद।
भवदीय,
क. ख. ग.
207/40
न्यू शीतल नगर
——- प्रदेश
दिनांक : 20-06-20.......
- #2-iआप अपने परिवार के साथ किसी एक प्रदर्शनी (Exhibition) को देखने गए
थे। वहाँ पर आपने क्या क्या देखा ? वहाँ कौन-कौन सी चीजों ने आकर्षित किया ?
जीवन में उनकी क्या उपयोगिता है ? अपना अनुभव बताते हुए अपने प्रिय मित्र
को पत्र लिखिए।Ans : परीक्षा भवन,
——- नगर।
दिनांक : 18.9.20.......
प्रिय मित्र सुमंत,
सप्रेम नमस्कार। आशा है तुम स्वस्थ एवं सानंद होंगे। आज मैं तुम्हें अपना
ऐसा अनुभव बताने जा रहा हूँ जिसे मैंने अपने परिवार के साथ एक प्रदर्शनी
में जाकर प्राप्त किया। मित्र! गत सप्ताह हमारे नगर में हस्तशिल्प की एक
भव्य प्रदर्शनी आयोजित की गई। प्रदर्शनी पूरे सप्ताह चलने वाली थी, परंतु
हम दूसरे ही दिन प्रदर्शनी देखने चले गए क्योंकि मुझे हस्तशिल्प के प्रति
विशेष उत्साह था। मैं प्रदर्शनी में लोगों की कारीगरी देखकर दंग रह गया।
मैंने प्राचीन हस्तकला के ऐसे नमूने कभी नहीं देखे थे। सबसे बड़ा विस्मय
इस बात पर हुआ कि ग्रामीण लोगों ने कूड़ा समझी जाने वाली तुच्छ वस्तुओं से
सुंदर कालीन, पायदान, चित्र, पत्रिका-स्टैंड, फ्रेम, मेजपोश, टोकरियाँ,
आसन-न जाने कितनी आकर्षक वस्तुएँ बना डाली थीं। शहतूत और बाँस की टहनियों
से बनी वस्तुओं का तो रूप ही निराला था। वस्त्रों में रेशम, पशमीना व सूती
कपड़ों पर भव्य कारीगरी दिखाई गई थी। हमने भी कुछ वस्त्र खरीदे और शाम होने
पर घर आए। ऐसी ही प्रदर्शनी कभी फिर लगी, तो तुम्हें अवश्य सूचित करूँगा।
तुम्हें बहुत आनंद आएगा।
तुम्हारा अभिन्न मित्र
क.ख. ग.
- #2-iiदिन-प्रतिदिन बढ़ते हुए जल संकट की ओर ध्यान
आकर्षित करते हुए नगर पालिका के अध्यक्ष को एक पत्र लिखिए जिसमें वर्षा के
जल का संचयन (rain water harvesting) करने के लिए व्यापक स्तर पर परियोजना
चलाने का सुझाव दिया गया हो।Ans : सेवा में,
अध्यक्ष महोदय,
नगरपालिका,
——- नगर।
विषय : नगर में बढ़ रहा जल संकट।
मान्य महोदय,
मैं इस पत्र द्वारा आपका ध्यान नगर में दिन-प्रतिदिन बढ़ते जल संकट की ओर
दिलाना चाहता हूँ। महोदय, हमारे नगर में जल सुविधाएँ नाममात्र हैं। प्रातः
जल आपूर्ति पाँच से सात तक रहती है। दुपहर को आपूर्ति बंद रहती है। संध्या
समय सात से आठ तक पानी आता है। जिन लोगों के घरों में हैंडपंप लगे हैं,
उन्हें भी भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि जल-स्तर बहुत
नीचे चला गया है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि नगर में शिविर लगाकर लोगों को
वर्षा के जल का संचयन करने की ओर प्रेरित किया जाए।
संभव हो तो ऐसी
व्यवस्था करने के लिए अनुदान की भी कुछ-न-कुछ व्यवस्था की जानी चाहिए। इससे
लोगों को तो राहत मिलेगी ही, साथ ही साथ नगरपालिका के कार्य में भी सहजता आ
सकेगी। राजस्थान के लोग वर्षा जल संचयन (Rain Water Harvesting) में
अत्यंत दक्ष हैं। हमें उनसे प्रेरणा लेकर इस जल संकट का समाधान करना चाहिए।
सधन्यवाद।
भवदीय,
क. ख. ग.
207/40
न्यू शीतल नगर
——- प्रदेश
दिनांक : 20-06-20.......
- Qstn #3Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow, using your own words as far as possible :
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा उसके नीचे लिखे गए प्रश्नों के
उत्तर हिंदी में लिखिए। उत्तर यथासंभव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए :
एक रियासत थी। उसका नाम था कंचनगढ़। वहाँ बहुत गरीबी थी। लोग कमज़ोर थे और
धरती में कुछ उगता न था। चारों और भुखमरी थी। एक दिन राजा कंचनदेव राज्य
की दशा से चिंतित हो उठे। अचानक उनके पास एक साधु आए। राजा ने उन्हें
प्रणाम किया। राजा ने साधु को अपने राज्य के बारे में बताया और कुछ उपाय
करने की प्रार्थना की। साधु मुस्कराकर बोले-“कंचनगढ़ के नीचे सोने की खान
है।” इतना कहकर साधु चले गए। राजा ने खुदाई करवाई। वहाँ सोने की खान निकली।
राजा का खजाना सोने से भर गया। राजा ने अपने राज्य में जगह-जगह मुफ़्त
भोजनालय बनवाए, दवाखाने खुलवाए, चारागाह बनवाए तथा अन्य सुख-सुविधा के साधन
उपलब्ध करा दिए। अब वहाँ कोई दुखी नहीं था।
सब लोग खुश थे।
धीरे-धीरे लोग आलसी हो गए। कोई काम नहीं करता था। भोजन तक मुफ़्त में मिलने
लगा था। मंत्री ने राजा को बहुत समझाया और कहा-“महाराज, लोग आलसी होते जा
रहे हैं। उनको काम दिया जाए।” परंतु राजा ने मंत्री की बात को टाल दिया।
कंचनगढ़ की समृद्धि को देखकर पड़ोसी रियासत के राजा को ईर्ष्या हुई। उसने
अचानक कंचनगढ़ पर चढ़ाई कर दी और माँग की-“सोना दो या लड़ो।” कंचनगढ़ के
आलसी लोगों ने राजा से कहा-“हमारे पास बहुत सोना है, कुछ दे दें। बेकार खून
क्यों बहाया जाए?” राजा ने लोगों की बात मान ली और सोना दे दिया। कुछ
दिनों बाद
उसी पड़ोसी राजा ने कंचनगढ़ पर फिर चढ़ाई कर दी। इस बार
उसका लालच और बढ़ गया था। इसी प्रकार उसने कई बार चढ़ाई कर-करके कंचनगढ़ से
सोना ले लिया। यह सब देखकर राजा का मंत्री बहुत परेशान हो गया। वह राजा को
समझाना चाहता था, किंतु राजा के सम्मुख कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हो पा
रही थी। अंत में उसने युक्ति से काम लिया। एक दिन मंत्री कंचनदेव को घुमाने
के लिए नगर के पूर्व की ओर बने गुलाब के बाग की ओर ले गया। राजा कंचनदेव
ने देखा कि बाग में दाने बिखरे पड़े हैं।
कबूतर दाना चुग रहे हैं।
थोड़ी दूर कुछ कबूतर मरे पड़े हैं। कुछ भी समझ में न आने पर राजा ने मरे
हुए कबूतरों के बारे में मंत्री से पूछा। मंत्री ने बताया-“महाराज, इन्हें
शिकारी पक्षियों ने मारा है।” राजा ने पूछा-“तो कबूतर भागते क्यों
नहीं””भागते हैं लेकिन लालच में फिर से आ जाते हैं, क्योंकि उनके लिए यहाँ,
आपकी आज्ञा से दाना डाला जाता है।”-मंत्री ने बताया। राजा ने कहा-“दाना
डलवाना बंद कर दो।”
मंत्री ने वैसा ही किया। राजा अगले दिन फिर घूमने
निकले। उन्होंने देखा कि दाना तो नहीं है, किंतु कबूतर आ-जा रहे हैं। राजा
ने मंत्री से इसका कारण पूछा। मंत्री ने बताया-“महाराज, इन्हें बिना
प्रयास के ही दाना मिल रहा था। यह अब दाने-चारे की तलाश की आदत भूल चुके
हैं, आलसी हो गए हैं। शिकारी पक्षी इस बात को जानते हैं कि कबूतर तो यही
आएँगे अतः वे इन्हें आसानी से मार डालते हैं।” राजा चिंता में पड़ गए।
उन्होंने शाम को मंत्री को बुलाकर कहा”नगर के सारे मुफ़्त भोजनालय बंद करवा
दो। जो मेहनत करे, वही खाए। लोग निकम्मे और आलसी होते जा रहे हैं। और हाँ,
एक बात और। मैं अब शत्रु को सोना नहीं दूंगा, बल्कि उससे लड़ाई करूँगा।
जाओ, सेना को मज़बूत करो।” मंत्री राजा की बात सुनकर बहुत खुश हो गया।
- #3-iराजा कंचनदेव की चिंता का क्या कारण था ? उन्होंने साधु से क्या प्रार्थना की?Ans : राजा की चिंता का कारण राज्य की गरीबी, लोगों की कमजोरी व चारों ओर
फैली भुखमरी थी। उसने साधु से राज्य के विषय में चर्चा करके कुछ उपाय करने
की प्रार्थना की।
- #3-iiसाधु ने राजा को क्या बताया ? उसके बाद राजा ने राज्य के लिए क्या-क्या कार्य किए ?Ans : साधु ने राजा को बताया कि उसके राज्य कंचनगढ़ के
नीचे सोने की खान है। राजा ने खुदाई करवाकर सोना प्राप्त किया और अपने
राज्य में मुफ़्त भोजनालय और दवाखाने खुलवा दिए। चरागाह बनवाए और अन्य
सुख-सुविधा के साधन उपलब्ध करवाए।
- #3-iiiपड़ोसी राजा के आक्रमण करने पर कंचनगढ़ का राजा क्या करता था और क्यों ?Ans : पड़ोसी रियासत के राजा के
आक्रमण करने पर राजा सोने का कुछ भाग दे देता था क्योंकि उसकी प्रजा लड़कर
खून बहाने के स्थान पर कुछ सोना देने का विचार रखती थी, क्योंकि मुफ्त
सुविधाएँ पाकर लोग आलसी हो चुके थे।