CBSE-IX-Hindi

07: धर्म की आड़ - गणेशशंकर विद्यार्थी

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  • Qstn #1
    धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को कैसे रोका जा सकता है?
    Ans : धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले भीषण व्यापार को रोकने के लिए दृढ़-निश्चय के साथ साहसपूर्ण कदम उठाना होगा। हमें साधारण और सीधे-साधे लोगों को उनकी असलियत बताना होगा जो धर्म के नाम पर दंगे-फसाद करवाते हैं। लोगों को धर्म के नाम पर उबल पड़ने के बजाए बुद्धि से काम लेने के लिए प्रेरित करना होगा। इसके अलावा धार्मिक ढोंग एवं आडंबरों से भी लोगों को बचाना होगा।
  • Qstn #2
    ‘बुधि पर मार’ के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?
    Ans : बुद्धि की मार से लेखक का अर्थ है कि लोगों की बुद्धि में ऐसे विचार भरना कि वे उनके अनुसार काम करें। धर्म के नाम पर, ईमान के नाम पर लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काया जाता है। लोगों की बुद्धि पर परदा डाल दिया जाता है। उनके मन में दूसरे धर्म के विरुद्ध जहर भरा जाता है। इसका उद्देश्य खुद का प्रभुत्व बढ़ाना होता है।
  • Qstn #3
    लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना कैसी होनी चाहिए?
    Ans : लेखक की दृष्टि में धर्म की भावना ऐसी होनी चाहिए, जिसमें दूसरों का कल्याण निहित हो। यह भावना पवित्र आचरण और मनुष्यता से भरपूर होनी चाहिए। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म चुनने, पूजा-पाठ की विधि अपनाने की छूट होनी चाहिए। इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। धार्मिक भावना पशुता को समाप्त करने के साथ मनुष्यता बढ़ाने वाली होनी चाहिए।
  • Qstn #4
    महात्मा गांधी के धर्म-संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
    Ans : महात्मा गाँधी अपने जीवन में धर्म को महत्त्वपूर्ण स्थान देते थे। वे एक कदम भी धर्म विरुद्ध नहीं चलते थे। परंतु उनके लिए धर्म का अर्थ था-ऊँचे विचार तथा मन की उदारता। वे ‘कर्तव्य’ पक्ष पर जोर देते थे। वे धर्म के नाम पर हिंदू-मुसलमान की कट्टरता के फेर में नहीं पड़ते थे। एक प्रकार से कर्तव्य ही उनके लिए धर्म था।
  • Qstn #5
    सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारना क्यों आवश्यक है?
    Ans : सबके कल्याण हेतु अपने आचरण को सुधारनी इसलिए ज़रूरी है कि पूजा-पाठ करके, नमाज़ पढ़कर हम दूसरों का अहित करने, बेईमानी करने के लिए आज़ाद नहीं हो सकते। आने वाला समय ऐसे धर्म को बिल्कुल भी नहीं टिकने देगा। ऐसे में आवश्यक है कि हम अपना स्वार्थपूर्ण आचरण त्यागकर दूसरों का कल्याण करने वाला पवित्र एवं शुद्धाचरण अपनाएँ। आचरण में शुद्धता के बिना धर्म के नाम पर हम कुछ भी करें, सब व्यर्थ है।
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    Section : A-s3
    (ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
  • Qstn #1
    उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।
    Ans : उक्त कथन का आशय है कि साधारण आदमी में सोचने-विचारने की अधिक शक्ति नहीं होती। वह अपने धर्म, संप्रदाय के प्रति अंधी श्रद्धा रखता है। उसे धर्म के नाम पर जिस काम के लिए कहा जाता है, वह उसी काम को करने लगता है। उसमें अच्छा-बुरा सोचने-विचारने की शक्ति नहीं होती।
  • Qstn #2
    यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना, और फिर धर्म, ईमान, ईश्वर और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिधि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
    Ans : यहाँ अर्थात् भारत में कुछ लोग अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए लोगों का बौधिक-शोषण करते हैं। वे धर्म के नाम पर तरह तरह की विरोधाभासी बातें साधारण लोगों के दिमाग में भर देते हैं और धर्म के नाम पर उन्हें गुमराह कर उनका मसीहा स्वयं बन जाते हैं। इन धर्माध लोगों को धर्म के नाम पर आसानी से लड़ाया-भिड़ाया जा सकता है। कुछ चालाक लोग इनकी धार्मिक भावनाएँ भड़काकर अपनी स्वार्थपूर्ति करते हैं।
  • Qstn #3
    अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
    Ans : इस उक्ति का अर्थ है कि आनेवाले समय में किसी मनुष्य के पूजा-पाठ के आधार पर उसे सम्मान नहीं मिलेगा। सत्य आचरण और सदाचार से भले आदमी की पहचान की जाएगी।
  • Qstn #4
    तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं रहेगा, दया करके, मनुष्यत्व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो!
    Ans : स्वयं को धार्मिक और धर्म का तथाकथित ठेकेदार समझने वाले साधारण लोगों को लड़ाकर अपना स्वार्थ पूरा करते हैं। ऐसे लोग पूजा-पाठ, नमाज़ आदि के माध्यम से स्वयं को सबसे बड़े आस्तिक समझते हैं। ईश्वर ऐसे लोगों से कहता है। कि तुम मुझे मानो या न मानो पर अपने आचरण को सुधारो, लोगों को लड़ाना-भिड़ाना बंद करके उनके भले की सोचो। अपनी इंसानियत को जगाओ। अपनी स्वार्थ-पूर्ति की पशु-प्रवृत्ति को त्यागो और अच्छे आदमी बनकर अच्छे काम करो।
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    Section : A-s4
    भाषा-अध्ययन
  • Qstn #1
    उदाहरण के अनुसार शब्दों के विपरीतार्थक लिखिए-

    • सुगम - दुर्गम
    • ईमान - ...........
    • धर्म - ...........
    • स्वार्थ - ..........
    • साधारण - .............
    • नियंत्रित - .........
    • दुरुपयोग - ............
    • स्वाधीनता - ............
    Ans :

    • धर्म - अधर्म
    • ईमान - बेईमान
    • साधारण - असाधारण
    • स्वार्थ - परमार्थ
    • दुरुपयोग - सदुपयोग
    • नियंत्रित - अनियंत्रित
    • स्वाधीनता - पराधीनता
  • Qstn #2
    निम्नलिखित उपसर्गों का प्रयोग करके दो-दो शब्द बनाइए-
    ला, बिला, बे, बद, ना, खुश, हर, गैर
    Ans :

    • ला - लापता, लावारिस
    • ना - नासमझ, नालायक
    • बिला - बिलावज़ह, बिलानागा
    • खुश - खुशकिस्मत, खुशबू
    • बद - बदनसीब, बदतमीज़
    • हर - हरवक्त, हर दिन
    • बे - बेवफा, बेरहम
    • गैर - गैरहाजिर, गैरकानूनी
  • Qstn #3
    उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए-
    उदाहरण : देव + त्व = देवत्व
    Ans :

    • व्यक्ति + त्व = व्यक्तित्व
    • अपना + त्व = अपनत्व
    • देव + त्व = देवत्व
    • मनुष्य + त्व = मनुष्यत्व
    • गुरु + त्व = गुरुच
  • Qstn #4
    निम्नलिखित उदाहरण को पढ़कर पाठ में आए संयुक्त शब्दों को छाँटकर लिखिए-
    उदहारण : चलते-पुरजे
    Ans :

    • पढ़े - लिखे
    • इने - गिने
    • सुख - दुख
    • पूजा - पाठ