CBSE-IX-Hindi
07: धर्म की आड़ - गणेशशंकर विद्यार्थी
- #1उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बूझता, और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है।Ans : उक्त कथन का आशय है कि साधारण आदमी में सोचने-विचारने की अधिक शक्ति नहीं होती। वह अपने धर्म, संप्रदाय के प्रति अंधी श्रद्धा रखता है। उसे धर्म के नाम पर जिस काम के लिए कहा जाता है, वह उसी काम को करने लगता है। उसमें अच्छा-बुरा सोचने-विचारने की शक्ति नहीं होती।