ICSE-IX-Hindi
04: नेता जी का चश्मा (Netaji ka Chasma) by Swayam Prakash
- #3प्रश्न ग निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए : (i) “लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
प्रस्तुत कथन में नेताजी का ओरिजिनल चश्मा से क्या तात्पर्य है?
(ii) “लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
मूर्तिकार कौन था और उसने मूर्ति का चश्मा क्यों नहीं बनाया था?
(iii) “लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
“वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!”कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
(iv) “लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
(i) “लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
प्रस्तुत कथन में नेताजी का ओरिजिनल चश्मा से क्या तात्पर्य है?
(ii) “लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
मूर्तिकार कौन था और उसने मूर्ति का चश्मा क्यों नहीं बनाया था?
(iii) “लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
“वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!”कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
(iv) “लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
Ans : (i)
प्रस्तुत कथन में नेताजी का ओरिजिनल चश्मा से तात्पर्य नेताजी के बार-बार बदलने वाले फ्रेम से है। मूर्तिकार ने नेताजी की मूर्ति बनाते समय चश्मा नहीं बनाया था। नेताजी बिना चश्मे के यह बात एक गरीब देशभक्त चश्मेवाले कैप्टन को पसंद नहीं आती थी इसलिए वह नेताजी की मूर्ति पर उसके पास उपलब्ध फ्रेमों से एक फ्रेम लगा देता था। (ii)
मूर्तिकार उसी कस्बे के स्थानीय विद्यालय का मास्टर मोतीलाल था। मूर्ति बनाने के बाद शायद वह यह तय नहीं कर पाया होगा कि पत्थर से पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाये या फिर उसने पारदर्शी चश्मा बनाने की कोशिश की होगी मगर उसमें असफल रहा होगा। (iii)
पानवाले ने कैप्टन को लँगड़ा तथा पागल कहा है। जो कि अति गैर जिम्मेदाराना और दुर्भाग्यपूर्ण वक्तव्य है। कैप्टन में एक सच्चे देशभक्त के वे सभी गुण मौजूद हैं जो कि पानवाले में या समाज के अन्य किसी वर्ग में नहीं है। वह भले ही लँगड़ा है पर उसमें इतनी शक्ति है कि वह कभी भी नेताजी को बग़ैर चश्मे के नहीं रहने देता है। अत: कैप्टन पानवाले से अधिक सक्रिय तथा विवेकशील तथा देशभक्त है। (iv)
चश्मेवाला कभी सेनानी नहीं रहा परन्तु चश्मेवाला एक देशभक्त नागरिक था। उसके हृदय में देश के वीर जवानों के प्रति सम्मान था। वह अपनी ओर से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर अवश्य लगाता था उसकी इसी भावना को देखकर लोग उसे कैप्टन कहते थे। (i)
प्रस्तुत कथन में नेताजी का ओरिजिनल चश्मा से तात्पर्य नेताजी के बार-बार बदलने वाले फ्रेम से है। मूर्तिकार ने नेताजी की मूर्ति बनाते समय चश्मा नहीं बनाया था। नेताजी बिना चश्मे के यह बात एक गरीब देशभक्त चश्मेवाले कैप्टन को पसंद नहीं आती थी इसलिए वह नेताजी की मूर्ति पर उसके पास उपलब्ध फ्रेमों से एक फ्रेम लगा देता था। (ii)
मूर्तिकार उसी कस्बे के स्थानीय विद्यालय का मास्टर मोतीलाल था। मूर्ति बनाने के बाद शायद वह यह तय नहीं कर पाया होगा कि पत्थर से पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाये या फिर उसने पारदर्शी चश्मा बनाने की कोशिश की होगी मगर उसमें असफल रहा होगा। (iii)
पानवाले ने कैप्टन को लँगड़ा तथा पागल कहा है। जो कि अति गैर जिम्मेदाराना और दुर्भाग्यपूर्ण वक्तव्य है। कैप्टन में एक सच्चे देशभक्त के वे सभी गुण मौजूद हैं जो कि पानवाले में या समाज के अन्य किसी वर्ग में नहीं है। वह भले ही लँगड़ा है पर उसमें इतनी शक्ति है कि वह कभी भी नेताजी को बग़ैर चश्मे के नहीं रहने देता है। अत: कैप्टन पानवाले से अधिक सक्रिय तथा विवेकशील तथा देशभक्त है। (iv)
चश्मेवाला कभी सेनानी नहीं रहा परन्तु चश्मेवाला एक देशभक्त नागरिक था। उसके हृदय में देश के वीर जवानों के प्रति सम्मान था। वह अपनी ओर से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर अवश्य लगाता था उसकी इसी भावना को देखकर लोग उसे कैप्टन कहते थे।
- #3-i“लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
प्रस्तुत कथन में नेताजी का ओरिजिनल चश्मा से क्या तात्पर्य है?
Ans :
प्रस्तुत कथन में नेताजी का ओरिजिनल चश्मा से तात्पर्य नेताजी के बार-बार बदलने वाले फ्रेम से है। मूर्तिकार ने नेताजी की मूर्ति बनाते समय चश्मा नहीं बनाया था। नेताजी बिना चश्मे के यह बात एक गरीब देशभक्त चश्मेवाले कैप्टन को पसंद नहीं आती थी इसलिए वह नेताजी की मूर्ति पर उसके पास उपलब्ध फ्रेमों से एक फ्रेम लगा देता था।
- #3-ii“लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
मूर्तिकार कौन था और उसने मूर्ति का चश्मा क्यों नहीं बनाया था?
Ans :
मूर्तिकार उसी कस्बे के स्थानीय विद्यालय का मास्टर मोतीलाल था। मूर्ति बनाने के बाद शायद वह यह तय नहीं कर पाया होगा कि पत्थर से पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाये या फिर उसने पारदर्शी चश्मा बनाने की कोशिश की होगी मगर उसमें असफल रहा होगा।
- #3-iii“लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
“वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!”कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
Ans :
पानवाले ने कैप्टन को लँगड़ा तथा पागल कहा है। जो कि अति गैर जिम्मेदाराना और दुर्भाग्यपूर्ण वक्तव्य है। कैप्टन में एक सच्चे देशभक्त के वे सभी गुण मौजूद हैं जो कि पानवाले में या समाज के अन्य किसी वर्ग में नहीं है। वह भले ही लँगड़ा है पर उसमें इतनी शक्ति है कि वह कभी भी नेताजी को बग़ैर चश्मे के नहीं रहने देता है। अत: कैप्टन पानवाले से अधिक सक्रिय तथा विवेकशील तथा देशभक्त है।
- #3-iv“लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
Ans :
चश्मेवाला कभी सेनानी नहीं रहा परन्तु चश्मेवाला एक देशभक्त नागरिक था। उसके हृदय में देश के वीर जवानों के प्रति सम्मान था। वह अपनी ओर से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर अवश्य लगाता था उसकी इसी भावना को देखकर लोग उसे कैप्टन कहते थे।