CBSE-IX-Hindi

14: अग्नि पथ - हरिवंशराय बच्चन

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  • #2
    निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए- (क) तू न थमेगा कभी
    तू ने मुड़ेगा कभी
    (ख) चल रहा मनुष्य है।
    अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, पथपथ
    (क) तू न थमेगा कभी
    तू ने मुड़ेगा कभी
    (ख) चल रहा मनुष्य है।
    अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, पथपथ
    Ans : (क)
    इन पंक्तियों का भाव यह है कि हे मनुष्य! जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, पर तू उनसे हार मानकर कभी रुकेगा नहीं और संघर्ष से मुँह मोड़कर तू कभी वापस नहीं लौटेगा बस आगे ही बढ़ता जाएगा। (ख)
    कवि देखता है कि जीवन पथ में बहुत-सी कठिनाइयाँ होने के बाद भी मनुष्य उनसे हार माने बिना आगे बढ़ता जा रहा है। कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए वह आँसू, पसीने और खून से लथपथ है। मनुष्य निराश हुए बिना बढ़ता जा रहा है। (क)
    इन पंक्तियों का भाव यह है कि हे मनुष्य! जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, पर तू उनसे हार मानकर कभी रुकेगा नहीं और संघर्ष से मुँह मोड़कर तू कभी वापस नहीं लौटेगा बस आगे ही बढ़ता जाएगा। (ख)
    कवि देखता है कि जीवन पथ में बहुत-सी कठिनाइयाँ होने के बाद भी मनुष्य उनसे हार माने बिना आगे बढ़ता जा रहा है। कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए वह आँसू, पसीने और खून से लथपथ है। मनुष्य निराश हुए बिना बढ़ता जा रहा है।
  • #2-क
    तू न थमेगा कभी
    तू ने मुड़ेगा कभी
    Ans :
    इन पंक्तियों का भाव यह है कि हे मनुष्य! जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, पर तू उनसे हार मानकर कभी रुकेगा नहीं और संघर्ष से मुँह मोड़कर तू कभी वापस नहीं लौटेगा बस आगे ही बढ़ता जाएगा।
  • #2-ख
    चल रहा मनुष्य है।
    अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, पथपथ
    Ans :
    कवि देखता है कि जीवन पथ में बहुत-सी कठिनाइयाँ होने के बाद भी मनुष्य उनसे हार माने बिना आगे बढ़ता जा रहा है। कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए वह आँसू, पसीने और खून से लथपथ है। मनुष्य निराश हुए बिना बढ़ता जा रहा है।