CBSE-IX-Hindi

12: एक फूल की चाह - सियारामशरण गुप्त

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  • #1
    निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (क) कविता की उन पंक्तियों को निखिए, जिनमें निम्नलिखित अथं का बोध होता है-
    (i) सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
    (ii) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
    (iii) पुजारी से प्रसाद/फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
    (iv) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप।
    (ख) बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?
    (ग) सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?
    (घ) जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया?
    (ङ) इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
    (च) इस कविता में कुछ भाषिक प्रतीकों/बिंबों को छाँटकर लिखिए-
    उदाहरण : अंधकार की छाया

    1. ............
    2. ...............
    3. ............
    4. ..............
    5. ...........

    (क) कविता की उन पंक्तियों को निखिए, जिनमें निम्नलिखित अथं का बोध होता है-
    (i) सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
    (ii) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
    (iii) पुजारी से प्रसाद/फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
    (iv) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप।
    (ख) बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?
    (ग) सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?
    (घ) जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया?
    (ङ) इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
    (च) इस कविता में कुछ भाषिक प्रतीकों/बिंबों को छाँटकर लिखिए-
    उदाहरण : अंधकार की छाया

    1. ............
    2. ...............
    3. ............
    4. ..............
    5. ...........

    Ans : (क)
    (i)
    नहीं खेलना रुकता उसका
    नहीं ठहरती वह पल-भर।
    मेरा हृदय काँप उठता था,
    बाहर गई निहार उसे।
    (ii)
    ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
    मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
    स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे
    पाकर समुदित रवि-कर-जाल।
    (iii) पुजारी से प्रसाद/फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
    भूल गया उसका लेना झट,
    परम लाभ-सा पाकर मैं।
    सोचा, -बेटी को माँ के ये
    पुण्य-पुष्प दें जाकरे मैं।
    (iv)
    बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
    छाती धधक उठी मेरी,
    हाय! फूल-सी कोमल बच्ची
    हुई राख की थी ढेरी!
    अंतिम बार गोद में बेटी,
    तुझको ले न सका मैं हा!
    एक फूल माँ का प्रसाद भी
    तुझको दे न सका मैं हा! (ख)
    बीमार बच्ची सुखिया ने अपने पिता के सामने यह इच्छा प्रकट की कि वह देवी माँ के मंदिर के प्रसाद का फूल चाहती है। (ग)
    सुखिया का पिता उस वर्ग से संबंधित था, जिसे समाज अछूत समझता था। समाज के कुलीन तथाकथित भक्तों ने इस वर्ग के लोगों का मंदिर में प्रवेश वर्जित कर रखा था। सुखिया का पिता अपनी बेटी की इच्छा पूरी करने के लिए मंदिर में प्रवेश कर गया। मंदिर की पवित्रता नष्ट करने और देवी का अपमान करने का आरोप लगाकर उसे सात दिन का कारावास देकर दंडित किया गया। (घ)
    जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को राख की ढेरी के रूप में पाया। उसकी मृत्यु हो गई थी। अतः उसके संबंधियों ने उसका दाह संस्कार कर दिया था। (ङ)
    केंद्रीय भाव- ‘एक फूल की चाह’ कविता में समाज में फैले वर्ग-भेद, ऊँच-नीच और छुआछूत की समस्या को केंद्र में रखा गया है। समाज दो वर्गों में बँटा हुआ है-एक तथाकथित कुलीन एवं उच्चवर्ग, दूसरो अछूत समझा। जाने वाला निम्न वर्ग। इसी अछूत वर्ग की कन्या सुखिया जो महामारी का शिकार होकर बुखार से तपती अवस्था में अर्ध बेहोशी की स्थिति में पहुँच जाती है। वह अपने पिता से देवी के प्रसाद का फूल लाने के लिए कहती है।
    उसका पिता मंदिर में जाता है और देवी के प्रसाद का फूल लेकर आते समय पकड़ लिया जाता है। न्यायालय भी मंदिर को अपवित्र करने तथा देवी का अपमान करने के जुर्म में उसे सात दिन कारावास देता है। इसी बीच उसकी पुत्री मर जाती है, और जला दी जाती है। इस प्रकार अछुतों के मंदिरों में प्रवेश, उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्ग पर किया गया अन्याय, एक पिता-पुत्री का अंतिम मिलन न हो पाने की वेदना कविता का केंद्रीय भाव है। (च)

    1. कितना बड़ा तिमिर आया।
    2. हाय! फूल-सी कोमल बच्ची |
    3. हुई राख की थी ढेरी ।
    4. स्वर्ण घनों में कब रवि डूबा
    5. झुलसी-सी जाती थी आँखें।
    (क)
    (i)
    नहीं खेलना रुकता उसका
    नहीं ठहरती वह पल-भर।
    मेरा हृदय काँप उठता था,
    बाहर गई निहार उसे।
    (ii)
    ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
    मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
    स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे
    पाकर समुदित रवि-कर-जाल।
    (iii) पुजारी से प्रसाद/फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
    भूल गया उसका लेना झट,
    परम लाभ-सा पाकर मैं।
    सोचा, -बेटी को माँ के ये
    पुण्य-पुष्प दें जाकरे मैं।
    (iv)
    बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
    छाती धधक उठी मेरी,
    हाय! फूल-सी कोमल बच्ची
    हुई राख की थी ढेरी!
    अंतिम बार गोद में बेटी,
    तुझको ले न सका मैं हा!
    एक फूल माँ का प्रसाद भी
    तुझको दे न सका मैं हा! (ख)
    बीमार बच्ची सुखिया ने अपने पिता के सामने यह इच्छा प्रकट की कि वह देवी माँ के मंदिर के प्रसाद का फूल चाहती है। (ग)
    सुखिया का पिता उस वर्ग से संबंधित था, जिसे समाज अछूत समझता था। समाज के कुलीन तथाकथित भक्तों ने इस वर्ग के लोगों का मंदिर में प्रवेश वर्जित कर रखा था। सुखिया का पिता अपनी बेटी की इच्छा पूरी करने के लिए मंदिर में प्रवेश कर गया। मंदिर की पवित्रता नष्ट करने और देवी का अपमान करने का आरोप लगाकर उसे सात दिन का कारावास देकर दंडित किया गया। (घ)
    जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को राख की ढेरी के रूप में पाया। उसकी मृत्यु हो गई थी। अतः उसके संबंधियों ने उसका दाह संस्कार कर दिया था। (ङ)
    केंद्रीय भाव- ‘एक फूल की चाह’ कविता में समाज में फैले वर्ग-भेद, ऊँच-नीच और छुआछूत की समस्या को केंद्र में रखा गया है। समाज दो वर्गों में बँटा हुआ है-एक तथाकथित कुलीन एवं उच्चवर्ग, दूसरो अछूत समझा। जाने वाला निम्न वर्ग। इसी अछूत वर्ग की कन्या सुखिया जो महामारी का शिकार होकर बुखार से तपती अवस्था में अर्ध बेहोशी की स्थिति में पहुँच जाती है। वह अपने पिता से देवी के प्रसाद का फूल लाने के लिए कहती है।
    उसका पिता मंदिर में जाता है और देवी के प्रसाद का फूल लेकर आते समय पकड़ लिया जाता है। न्यायालय भी मंदिर को अपवित्र करने तथा देवी का अपमान करने के जुर्म में उसे सात दिन कारावास देता है। इसी बीच उसकी पुत्री मर जाती है, और जला दी जाती है। इस प्रकार अछुतों के मंदिरों में प्रवेश, उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्ग पर किया गया अन्याय, एक पिता-पुत्री का अंतिम मिलन न हो पाने की वेदना कविता का केंद्रीय भाव है। (च)

    1. कितना बड़ा तिमिर आया।
    2. हाय! फूल-सी कोमल बच्ची |
    3. हुई राख की थी ढेरी ।
    4. स्वर्ण घनों में कब रवि डूबा
    5. झुलसी-सी जाती थी आँखें।
  • #1-क
    कविता की उन पंक्तियों को निखिए, जिनमें निम्नलिखित अथं का बोध होता है-
    (i) सुखिया के बाहर जाने पर पिता का हृदय काँप उठता था।
    (ii) पर्वत की चोटी पर स्थित मंदिर की अनुपम शोभा।
    (iii) पुजारी से प्रसाद/फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
    (iv) पिता की वेदना और उसका पश्चाताप।
    Ans :
    (i)
    नहीं खेलना रुकता उसका
    नहीं ठहरती वह पल-भर।
    मेरा हृदय काँप उठता था,
    बाहर गई निहार उसे।
    (ii)
    ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर
    मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;
    स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे
    पाकर समुदित रवि-कर-जाल।
    (iii) पुजारी से प्रसाद/फूल पाने पर सुखिया के पिता की मन:स्थिति।
    भूल गया उसका लेना झट,
    परम लाभ-सा पाकर मैं।
    सोचा, -बेटी को माँ के ये
    पुण्य-पुष्प दें जाकरे मैं।
    (iv)
    बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर
    छाती धधक उठी मेरी,
    हाय! फूल-सी कोमल बच्ची
    हुई राख की थी ढेरी!
    अंतिम बार गोद में बेटी,
    तुझको ले न सका मैं हा!
    एक फूल माँ का प्रसाद भी
    तुझको दे न सका मैं हा!
  • #1-ख
    बीमार बच्ची ने क्या इच्छा प्रकट की?
    Ans :
    बीमार बच्ची सुखिया ने अपने पिता के सामने यह इच्छा प्रकट की कि वह देवी माँ के मंदिर के प्रसाद का फूल चाहती है।
  • #1-ग
    सुखिया के पिता पर कौन-सा आरोप लगाकर उसे दंडित किया गया?
    Ans :
    सुखिया का पिता उस वर्ग से संबंधित था, जिसे समाज अछूत समझता था। समाज के कुलीन तथाकथित भक्तों ने इस वर्ग के लोगों का मंदिर में प्रवेश वर्जित कर रखा था। सुखिया का पिता अपनी बेटी की इच्छा पूरी करने के लिए मंदिर में प्रवेश कर गया। मंदिर की पवित्रता नष्ट करने और देवी का अपमान करने का आरोप लगाकर उसे सात दिन का कारावास देकर दंडित किया गया।
  • #1-घ
    जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को किस रूप में पाया?
    Ans :
    जेल से छूटने के बाद सुखिया के पिता ने अपनी बच्ची को राख की ढेरी के रूप में पाया। उसकी मृत्यु हो गई थी। अतः उसके संबंधियों ने उसका दाह संस्कार कर दिया था।
  • #1-ङ
    इस कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।
    Ans :
    केंद्रीय भाव- ‘एक फूल की चाह’ कविता में समाज में फैले वर्ग-भेद, ऊँच-नीच और छुआछूत की समस्या को केंद्र में रखा गया है। समाज दो वर्गों में बँटा हुआ है-एक तथाकथित कुलीन एवं उच्चवर्ग, दूसरो अछूत समझा। जाने वाला निम्न वर्ग। इसी अछूत वर्ग की कन्या सुखिया जो महामारी का शिकार होकर बुखार से तपती अवस्था में अर्ध बेहोशी की स्थिति में पहुँच जाती है। वह अपने पिता से देवी के प्रसाद का फूल लाने के लिए कहती है।
    उसका पिता मंदिर में जाता है और देवी के प्रसाद का फूल लेकर आते समय पकड़ लिया जाता है। न्यायालय भी मंदिर को अपवित्र करने तथा देवी का अपमान करने के जुर्म में उसे सात दिन कारावास देता है। इसी बीच उसकी पुत्री मर जाती है, और जला दी जाती है। इस प्रकार अछुतों के मंदिरों में प्रवेश, उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्ग पर किया गया अन्याय, एक पिता-पुत्री का अंतिम मिलन न हो पाने की वेदना कविता का केंद्रीय भाव है।
  • #1-च
    इस कविता में कुछ भाषिक प्रतीकों/बिंबों को छाँटकर लिखिए-
    उदाहरण : अंधकार की छाया

    1. ............
    2. ...............
    3. ............
    4. ..............
    5. ...........

    Ans :

    1. कितना बड़ा तिमिर आया।
    2. हाय! फूल-सी कोमल बच्ची |
    3. हुई राख की थी ढेरी ।
    4. स्वर्ण घनों में कब रवि डूबा
    5. झुलसी-सी जाती थी आँखें।