CBSE-IX-Hindi
06: प्रेमचंद के फटे जूते
- #3नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम परदे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुरबान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?Ans : (क) जीवन में यह विडंबना है कि जिसका स्थान पाँव में हैं, अर्थात् नीचे है, उसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है। जिसका स्थान ऊँचा है, जो सिर पर बिठाने योग्य है, उसे कम सम्मान मिलता रहा है। आजकल तो जूतों का अर्थात् धनवानों का मान-सम्मान और भी अधिक बढ़ गया है। एक धनवान पर पच्चीसों गुणी लोग न्योछावर होते हैं। गुणी लोग भी धनवानों की जी-हुजूरी करते नजर आते हैं।
(ख) प्रेमचंद ने कभी पर्दे को अर्थात् लुकाव-छिपाव को महत्त्व नहीं दिया। उन्होंने वास्तविकता को कभी टॅकने का प्रयत्न नहीं किया। वे इसी में संतुष्ट थे कि उनके पास छिपाने-योग्य कुछ नहीं था। वे अंदर-बाहर से एक थे। यहाँ तक कि उनका पहनावा भी अलग-अलग न था।
लेखक अपनी तथा अपने युग की मनोभावना पर व्यंग्य करता है कि हम पर्दा रखने को बड़ा गुण मानते हैं। जो व्यक्ति अपने कष्टों को छिपाकर समाज के सामने सुखी होने का ढोंग करता है, हम उसी को महान मानते हैं। जो अपने दोषों को छिपाकर स्वयं को महान सिद्ध करता है, हम उसी को श्रेष्ठ मानते हैं।
(ग) लेखक कहता है-प्रेमचंद ने समाज में जिसे भी घृणा-योग्य समझा, उसकी ओर हाथ की अँगुली से नहीं, बल्कि अपने पाँव की अँगुली से इशारा किया। अर्थात् उसे अपनी ठोकरों पर रखा, अपने जूते की नोक पर रखा, उसके विरुद्ध संघर्ष किए रखा।