ICSE-X-Hindi

02: गिरधर की कुंडलियां (Girdhar ki Kundaliyan) by Girdhar Kavi Rai

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  • Qstn #1
    Qstn 1. प्रश्न क: निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
    लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
    गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
    तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
    दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
    कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
    सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
    कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
    खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
    उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
    बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
    कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
    सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
  • #1-i
    लाठी से क्या-क्या लाभ होते हैं?
    Ans :
    लाठी संकट के समय हमारी सहायता करती है। गहरी नदी और नाले को पार करते समय मददगार साबित होती है। यदि कोई कुत्ता हमारे ऊपर झपटे तो लाठी से हम अपना बचाव कर सकते हैं। अगर हमें दुश्मन धमकाने की कोशिश करे तो लाठी के द्वारा हम अपना बचाव कर सकते हैं। लाठी गहराई मापने के काम आती है।
  • #1-ii
    ‘बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै’ - पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
    Ans : उत्तर: :
    इस पंक्ति का भाव यह है कि कंबल को बाँधकर उसकी छोटी-सी गठरी बनाकर अपने पास रख सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर रात में उसे बिछाकर सो सकते हैं।
  • #1-iii
    कमरी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?
    Ans :
    कंबल (कमरी) बहुत ही सस्ते दामों में मिलता है। यह हमारे ओढ़ने तथा बिछाने के काम आता है। कंबल को बाँधकर उसकी छोटी-सी गठरी बनाकर अपने पास रख सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर रात में उसे बिछाकर सो सकते हैं।
  • #1-iv
    शब्दार्थ लिखिए - कमरी, बकुचा, मोट, दमरी
    Ans :
    कमरी:
    काला कंबल
    बकुचा:
    छोटी गठरी
    मोट:
    गठरी
    दमरी:
    दाम, मूल्य
  • Qstn #2
    Qstn 2. प्रश्न ख: निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
    गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
    जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
    शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
    दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
    कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
    बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
    साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
    जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
    तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
    पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
    कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
    करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
  • #2-i
    ‘गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय’ - पंक्ति का भावार्थ लिखिए।
    Ans :
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    प्रस्तुत पंक्ति में गिरिधर कविराय ने मनुष्य के आंतरिक गुणों की चर्चा की है। गुणी व्यक्ति को हजारों लोग स्वीकार करने को तैयार रहते हैं लेकिन बिना गुणों के समाज में उसकी कोई मह्त्ता नहीं। इसलिए व्यक्ति को अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए।
  • #2-ii
    कौए और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि क्या स्पष्ट करते हैं?
    Ans :
    कौए और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि कहते है कि जिस प्रकार कौवा और कोयल रूप-रंग में समान होते हैं किन्तु दोनों की वाणी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है। कोयल की वाणी मधुर होने के कारण वह सबको प्रिय है। वहीं दूसरी ओर कौवा अपनी कर्कश वाणी के कारण सभी को अप्रिय है। अत: कवि कहते हैं कि बिना गुणों के समाज में व्यक्ति का कोई नहीं। इसलिए हमें अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए।
  • #2-iii
    संसार में किस प्रकार का व्यवहार प्रचलित है?
    Ans :
    कवि कहते हैं कि संसार में बिना स्वार्थ के कोई किसी का सगा-संबंधी नहीं होता। सब अपने मतलब के लिए ही व्यवहार रखते हैं। अत:इस संसार में मतलब का व्यवहार प्रचलित है।(iv) शब्दार्थ लिखिए -
    काग, बेगरजी, विरला, सहस
    pAnsr:
    काग:
    कौवा
    बेगरजी:
    नि:स्वार्थ
    विरला
    : बहुत कम मिलनेवाला
    सहस
    : हजार
  • Qstn #3
    प्रश्न ग निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
    रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
    छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
    जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।
    जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
    कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।
    पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
    पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
    दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
    यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
    पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
    कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
    चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
    राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
    साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
    जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।
    हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥
    कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।
    अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥
  • #3-i
    कैसे पेड़ की छाया में रहना चाहिए और कैसे पेड़ की छाया में नहीं?
    Ans :
    कवि के अनुसार हमें हमें सदैव मोटे और पुराने पेड़ों की छाया में आराम करना चाहिए क्योंकि उसके पत्ते झड़ जाने के बावज़ूद भी वह हमें शीतल छाया प्रदान करते हैं। हमें पतले पेड़ की छाया में कभी नहीं बैठना चाहिए क्योंकि वह आँधी-तूफ़ान के आने पर टूट कर हमें नुकसान पहुँचा सकते हैं।
  • #3-ii
    ‘पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम। दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥’- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
    Ans :
    उपर्युक्त पंक्ति का आशय यह है कि जिस प्रकार नाव में पानी भरने से नाव डूबने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में हम दोनों हाथ से नाव का पानी बाहर फेंकने लगते है। ठीक वैसे ही घर में धन बढ़ जाने पर हमें दोनों हाथों से दान करना चाहिए।
  • #3-iii
    कवि कैसे स्थान पर न बैठने की सलाह देते हैं?
    Ans :
    कवि हमें किसी स्थान पर सोच समझकर बैठने की सलाह देते है वे कहते है कि हमें ऐसे स्थान पर नहीं बैठना चाहिए जहाँ से किसी के द्वारा उठाए जाने का अंदेशा हो।
  • #3-iv
    शब्दार्थ लिखिए - बयारि, घाम, जर, दाय
    Ans :
    बयारि:
    हवा
    घाम:
    धूप
    जर:
    जड़
    दाय:
    रुपया-पैसा