ICSE-X-Hindi

03: महायज्ञ का पुरुस्कार by Yashpal

with Solutions -
  • #2-i
    यह देख सेठ का दिल भर आया - "बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
    सेठ जी ने अपना यज्ञ बेचने का निर्णय क्यों लिया?
    (ii) यह देख सेठ का दिल भर आया - "बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
    यज्ञ बेचने के लिए सेठ जी कहाँ गए?
    (iii) यह देख सेठ का दिल भर आया - "बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
    सेठ जी ने कहाँ विश्राम और भोजन करने की सोची?
    (iv) यह देख सेठ का दिल भर आया - "बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
    सेठ जी ने अपना सारा भोजन कुत्ते को क्यों खिला दिया?
    (ii) यह देख सेठ का दिल भर आया - "बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
    यज्ञ बेचने के लिए सेठ जी कहाँ गए?
    (iii) यह देख सेठ का दिल भर आया - "बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
    सेठ जी ने कहाँ विश्राम और भोजन करने की सोची?
    (iv) यह देख सेठ का दिल भर आया - "बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
    सेठ जी ने अपना सारा भोजन कुत्ते को क्यों खिला दिया?
    Ans : उत्तर:
    सेठ जी को जब पैसों को बहुत तंगी होने लगी और सेठानी ने उन्हें यज्ञ बेचने का सुझाव दिया। सेठानी की यज्ञ बेचने की बात पर पहले सेठ बड़े दुखी हुए परंतु बाद में तंगी का विचार त्यागकर सेठ अपना एक यज्ञ बेचने के लिए तैयार हो गए। (ii) उत्तर:
    कुंदनपुर नाम का एक नगर था, जिसमें एक बहुत सेठ रहते थे। लोग उन्हें धन्ना सेठ कहते थे। धन की उनके पास कोई कमी न थी। विपद्ग्रस्त सेठ ने उन्हीं के हाथ एक यज्ञ बेचने का का विचार किया। इस तरह सेठ जी ने कुंदनपुर के धन्ना सेठ के पास अपना यज्ञ बेचने गए। (iii) उत्तर:
    सेठ जी बड़े तड़के उठे और कुंदनपुर की ओर चल दिए। गर्मी के दिन थे सेठ जी सोचा कि सूरज निकलने से पूर्व जितना ज्यादा रास्ता पार कर लेगें उतना ही अच्छा होगा परंतु आधा रास्ता पार करते ही थकान ने उन्हें आ घेरा। सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया। (iv) उत्तर:
    सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया। पोटली से लोटा-डोर निकालकर पानी खींचा और हाथ-पाँव धोए। उसके बाद एक लोटा पानी ले पेड़ के नीचे आ बैठे और खाने के लिए रोटी निकालकर तोड़ने ही वाले थे कि क्या देखते हैं एक कुत्ता हाथ भर की दूरी पर पड़ा छटपटा रहा था। भूख के कारण वह इतना दुर्बल हो गया कि अपनी गर्दन भी नहीं उठा पा रहा था। यह देख सेठ का दिल भर आया और उन्होंने अपना सारा भोजन धीरे-धीरे कुत्ते को खिला दिया। (ii) उत्तर:
    कुंदनपुर नाम का एक नगर था, जिसमें एक बहुत सेठ रहते थे। लोग उन्हें धन्ना सेठ कहते थे। धन की उनके पास कोई कमी न थी। विपद्ग्रस्त सेठ ने उन्हीं के हाथ एक यज्ञ बेचने का का विचार किया। इस तरह सेठ जी ने कुंदनपुर के धन्ना सेठ के पास अपना यज्ञ बेचने गए। (iii) उत्तर:
    सेठ जी बड़े तड़के उठे और कुंदनपुर की ओर चल दिए। गर्मी के दिन थे सेठ जी सोचा कि सूरज निकलने से पूर्व जितना ज्यादा रास्ता पार कर लेगें उतना ही अच्छा होगा परंतु आधा रास्ता पार करते ही थकान ने उन्हें आ घेरा। सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया। (iv) उत्तर:
    सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया। पोटली से लोटा-डोर निकालकर पानी खींचा और हाथ-पाँव धोए। उसके बाद एक लोटा पानी ले पेड़ के नीचे आ बैठे और खाने के लिए रोटी निकालकर तोड़ने ही वाले थे कि क्या देखते हैं एक कुत्ता हाथ भर की दूरी पर पड़ा छटपटा रहा था। भूख के कारण वह इतना दुर्बल हो गया कि अपनी गर्दन भी नहीं उठा पा रहा था। यह देख सेठ का दिल भर आया और उन्होंने अपना सारा भोजन धीरे-धीरे कुत्ते को खिला दिया।
  • #2-ii
    यह देख सेठ का दिल भर आया - "बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
    यज्ञ बेचने के लिए सेठ जी कहाँ गए?
    Ans : उत्तर:
    कुंदनपुर नाम का एक नगर था, जिसमें एक बहुत सेठ रहते थे। लोग उन्हें धन्ना सेठ कहते थे। धन की उनके पास कोई कमी न थी। विपद्ग्रस्त सेठ ने उन्हीं के हाथ एक यज्ञ बेचने का का विचार किया। इस तरह सेठ जी ने कुंदनपुर के धन्ना सेठ के पास अपना यज्ञ बेचने गए।
  • #2-iii
    यह देख सेठ का दिल भर आया - "बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
    सेठ जी ने कहाँ विश्राम और भोजन करने की सोची?
    Ans : उत्तर:
    सेठ जी बड़े तड़के उठे और कुंदनपुर की ओर चल दिए। गर्मी के दिन थे सेठ जी सोचा कि सूरज निकलने से पूर्व जितना ज्यादा रास्ता पार कर लेगें उतना ही अच्छा होगा परंतु आधा रास्ता पार करते ही थकान ने उन्हें आ घेरा। सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया।
  • #2-iv
    यह देख सेठ का दिल भर आया - "बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
    सेठ जी ने अपना सारा भोजन कुत्ते को क्यों खिला दिया?
    Ans : उत्तर:
    सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया। पोटली से लोटा-डोर निकालकर पानी खींचा और हाथ-पाँव धोए। उसके बाद एक लोटा पानी ले पेड़ के नीचे आ बैठे और खाने के लिए रोटी निकालकर तोड़ने ही वाले थे कि क्या देखते हैं एक कुत्ता हाथ भर की दूरी पर पड़ा छटपटा रहा था। भूख के कारण वह इतना दुर्बल हो गया कि अपनी गर्दन भी नहीं उठा पा रहा था। यह देख सेठ का दिल भर आया और उन्होंने अपना सारा भोजन धीरे-धीरे कुत्ते को खिला दिया।