ICSE-X-Hindi

03: महायज्ञ का पुरुस्कार by Yashpal

with Solutions - page 2

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  • Qstn #4
    प्रश्न घ: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
  • #4-i
    विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, "धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे।”
    उपर्युक्त अवतरण की वक्ता का परिचय दें।
    Ans : उत्तर:
    उपर्युक्त अवतरण की वक्ता सेठ की पत्नी है। सेठ की पत्नी भी बुद्धिमत्ती स्त्री है। मुसीबत के समय अपना धैर्य न खोते हुए उसने अपने पति को अपना एक यज्ञ बेचने की सलाह दी। विपत्ति की स्थिति में वह अपने पति को ईश्वर पर विश्वास और धीरज धारण करने को कहती है। इस प्रकार सेठ की पत्नी भी कर्तव्य परायण, धीरवती, ईश्वर पर निष्ठा रखने वाली और संतोषी स्त्री थी।
  • #4-ii
    विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, "धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे।”
    वक्ता ने अपने पति की रज मस्तक पर क्यों लगाई?
    Ans : उत्तर:
    सेठानी के पति जब कुंदनपुर गाँव से धन्ना सेठ के यहाँ से खाली हाथ घर लौटे तो पहले तो वे काँप उठी पर जब उसे सारी घटना की जानकारी मिली तो उनकी वेदना जाती रही। उनका ह्रदय यह देखकर उल्लसित हो गया कि विपत्ति में भी उनके पति ने अपना धर्म नहीं छोड़ा और इसी बात के लिए सेठानी ने अपने पति की रज मस्तक से लगाई।
  • #4-iii
    विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, "धीरज रखें,भगवान सब भला करेंगे।”
    सेठानी भौचक्की-सी क्यों खड़ी हो गई?
    Ans : उत्तर:
    रात के समय सेठानी उठकर दालान में दिया जलाने आईं तो रास्ते में किसी चीज से टकराकर गिरते-गिरते बची। सँभलकर आले तक पहुँची और दिया जलाकर नीचे की ओर निगाह डाली तो देखा कि दहलीज के सहारे पत्थर ऊँचा हो गया है जिसके बीचों बीच लोहें का कुंदा लगा है। शाम तक तो वहाँ वह पत्थर बिल्कुल भी उठा नहीं था अब यह अकस्मात कैसे उठ गया? यही सब देखकर सेठानी भौचक्की-सी खड़ी हो गई।
  • #4-iv
    विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, "धीरज रखें,भगवान सब भला करेंगे।”
    सेठ को धन की प्राप्ति किस प्रकार हुई?
    Ans : उत्तर:
    सेठानी ने जब सेठ को बुलाकर दालान में लगे लोहे कुंदे के बारे में बताया तो सेठ जी भी आश्चर्य में पड़ गए। सेठ ने कुंदे को पकड़कर खींचा तो पत्थर उठ गया और अंदर जाने के लिए सीढ़ियाँ निकल आईं। सेठ और सेठानी सीढ़ियाँ उतरने लगे कुछ सीढ़ियाँ उतरते ही इतना प्रकाश सामने आया कि उनकी आँखें चौंधियाने लगी। सेठ ने देखा वह एक विशाल तहखाना है और जवाहरातों से जगमगा रहा है। इस तरह सेठ को धन की प्राप्ति हुई।